मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

नफरतों का सामना करना ही पड़ेगा


नफरतों का सामना करना ही पड़ेगा 
जीने के लिए दर्द को सहना ही पड़ेगा 
नफरत के सहारे न कटेगी ये जिदगी 
जीने के लिए प्यार तो करना ही पड़ेगा 
कब तक चलोगे तन्हां राहे जिन्दगी में 
कोई हमसफ़र तो राही करना ही पड़ेगा 
हम सब है मुसाफिर इक रात का बसेरा 
अगली सुबह यहाँ से चलना ही पड़ेगा 
वे कौन थे जो दिल को छू कर गुज़र गए 
इक बार उनसे फिर से मिलना ही पड़ेगा 
प्यार का अहसास जन्नत से कम नहीं 
प्यार का अहसास तो करना ही पड़ेगा

आरक्षण की निति गलत है,


आरक्षण की निति गलत है, 
इसको हमे मिटाना है, 
मानवता के लिए पुनह 
मानवता को अपनाना है ,
जाती-पाती का भेद मिटाके 
समता हमे बनाना है ,
राजनीती के परेदारो 
देश प्रेम की बात करो, 
फुट डालने की निति से ,
देश को मत बर्बाद करो ,
याद करो उन बीरो को
जो देश प्रेम के पथिक रहे
जिनकी क़ुरबानी को देख
अँगरेज़ भी चकित रहे
जाती-पाती का खेल खेलना
अब तो लोगो बंद करो
बिष बमन के दातो को
अब तो लोगो कूंद करो
बिन आरक्षण देश बनेगा
बिश्व गुरु मानवता का
जब यह देश समझ पायेगा
कीमत ज्ञान और योग्यता का.........
.............................................अरविन्द राय

आप के पहलू में आके हम दीवाने हो गए ..!!

आप के पहलू में आके हम दीवाने हो गए ..!!
प्यार के अलफ़ाज़ यारो अब फ़साने हो गए ...!!
गाँव में सुनता नहीं अब कोई माँ की लोरियां 
लोग कहते है की वो किस्से पुराने हो गए ...!!
कल तलक उमीदों के साये हमारे सर पे थे 
आज ऐसा क्या हुआ साये सयाने हो गए .....!!
चलना सिखा था पकड़कर के जिनकी उँगलियाँ 
मेरे हाथों से ही वे अपने बेगाने हो गए ......!!

................................ ....कवि अरविन्द राय

लोकतंत्र की परिपाटी का देखा खेल निराला


लोकतंत्र की परिपाटी का देखा खेल निराला
एक चोर ने कुत्ते को रोटी का टुकड़ा डाला
कुत्ता रोटी देख सोचने लगा ठिठक कर मन में
किसी गरीब की हाय को कैसे ग्रहण करू आनन् में
किसी गरीब बच्चे के मुह का यह तो निवाला होगा
भूख के ब्याकुल उस बच्चे का दिन भी काला होगा
भूख से ब्याकुल मै भी हूँ पर स्वाभिमान की खाऊंगा
किसी और की रोटी से ना अपनी भूख मिटाऊंगा
कुत्ते की इस उधेड़ बुन को थानेदार ने रोका 
उसे भागने की खातिर जब पीठ पे डंडा ठोका
कुत्ते को भगा उठाया, छट से उसने रोटी
जैसे सारी दुनिया की दौलत हो उसमे समेटी
तभी एक के नेता ने आ कर अपना हिस्सा बटाया
मिल बाट कर सबने खूब मज़े से खाया
मानवता के इस स्वरूप को देखकर कुत्ता चिल्लाया
धन्यबाद भगवान तेरा मुझे मानव नहीं बनाया ...!!

................................................अरविन्द राय

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

तेरे_ इश्क़ ने गर_ सताया न_ होता

अपनी एक ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहा हूँ........!

तेरे_ इश्क़ ने गर_ सताया न_ होता
तो यूँ_ आँसुओं को_ बहाया न होता
सफ़ीना भी साहिल की बाँहों में सोता
जो तूफ़ां _समुन्दर में आया न होता
अगर_ जानता _संगदिल की_ हक़ीक़त
तो दिल उस से हरगिज़ लगाया न होता
चंदा _में _है _दाग_ होता _यकीं _ग़र 
तो मे _चांदनी _में नहाया _न होता 
कशक आखिरी है यही दिल की अरविन्द
यकीं _बेवफाओं _पे _आया _न _होता ........!!

.....................अरविन्द राय

जलाओ प्यार का दीपक उजाला हर तरफ बिखरे

जलाओ प्यार का दीपक उजाला हर तरफ बिखरे 
सहर की लालिमा लेकर सबेरा हर तरफ बिखरे 

जिन्हें है कामना गुल की उन्हें गुलशन ही मिल जाये 
खुद _से _है _दुआ _मेरी खिंजा _में फूल _खिल जाए 
किसी की जिन्दगी में फिर कभी कोई गम नही पसरे .....
सहर की .............................!!
लुटाओ _प्यार की_ खुशबु जहाँ में _फूल बनकर के 
जो गुलशन को करे रुशवा चुभो उसे शूल बन कर के 
चमन की आन है तुझसे तेरा यश हर तरफ बिखरे ......
सहर की ..........................!!

.......................अरविन्द राय

अहिंसा की बाते कर बकरी बनो ना तुम,

अहिंसा की बाते कर बकरी बनो ना तुम, 
शेर की जुबान बोल सिंह बन जाईये
कायरो की भाषा छोड़,बीरों की शरण गह
छत्रपति शिव जी और राणा बन जाईये
मातृभूमि के लिए जो शीश को कटाए, 
ऐसे बीर महापुरुषों के बंश बन जाईये
देश को है लूट रहे सारे गाँधीवादी अब ,
हाथ में रिवाल्बर लेकर गोडसे बन जाईये...!

……………………………… अरविन्द राय

बुधवार, 18 सितंबर 2013

जख्म मिले चाहत में इतने कि सीना मुश्किल हो गया

जख्म मिले चाहत में इतने कि सीना मुश्किल हो गया 
कसम तुम्हारी खा कर  के अब  पीना मुश्किल हो गया 
दरवाज़े पर बैठ_ कर हर दिन_ राह तुम्हारी_ तकते है ........
लौट के आ जा अब तो तुम बिन जीना मुश्किल हो गया 

..................................................……………अरविन्द राय 

रूठे रूठे पिया को मनाऊ कैसे

रूठे रूठे पिया को मनाऊ कैसे …… 
उनके नैनो से नैना मिलाऊं कैसे …!!
प्रतिदिन पियवा देर से आवें 
राह तकत मोर नैन पिरावें
इक दिन देर भई जो मोसे 
काहे सजन मोहि पे रिसियावें ……
दिल की बतियाँ उन्हें समझाऊ कैसे ………
रूठे रूठे ………………!!
जाते समय मुड़ मुड़ के देखे 
नम आँखों से मोहे निरेखे
हाथ हिलाया जो मैंने तो 
नजरे फेर मनही मन लेखे …….  
जाते पियवा को वापस बुलाऊं कैसे ……… 
रूठे ररूठे पिया …………!!
अखियों में सपना सजन के ही आवे
बहिया पकड मोरी पास तन से लगावे
अखिया खुली सब खो गया सपना
बिरह अगनी में तन जल जावे ……. 
अपने सपने को अपना बनाऊ कैसे ……!!
रूठे रूठे पिया ……. !!
सावन रिमझिम रिमझिम बरशे
प्यासा मन कलियों का हरषे ….
सावन की बारिश में ब्याकुल …
पिया मिलन को तन मन तरसे
पिय मिलन की फुहार में नहाऊ कैसे ……. !!
रूठे रूठे पिया ……!!
 
……………अरविन्द राय 

देश सच में मेरा आज़ाद कहाँ हुआ अभी............!!

देश सच में मेरा आज़ाद कहाँ हुआ अभी............!!
मुगलों के बाद अंग्रेजों के गुलाम हुए
आक्रमणकारियों के हाथों गुलशन वीरान हुए
वीर शहीदों की चिताओं को जलाकर के 
गोरों से बचे तो अब कालों के गुलाम हुए 
कालों से आज़ादी का एलान कहाँ हुआ अभी ............!!
देश सच में ..............
"फूट डालो राज करो" नीति अंग्रेजो की थी 
दमनकारी नीति भी बनाई उन्ही गोरों ने थी 
खद्दर और खाकी भी उन्ही को अपना के चली 
जनता को दबाने वाली नीति अंग्रेजो की थी 
अंग्रेजो वाली निति का बिरोध कहाँ हुआ अभी .........!!
देश सच में .................
राजशाही टूटी लोकतंत्र का अवतार हुआ 
गुलशन में गुल नही सिर्फ खार खार हुआ 
राजनीती वोट की खिलाई गुल इस कदर 
सत्ता की खातिर हर रिश्ता तार तार हुआ 
जनतंत्र का यहाँ प्रसार कहाँ हुआ अभी ...........!!
देश सच में ....................
माली ही कुचलने लगा है मान कलियों का 
बहसी दरिंदों ने घटाया मान गलियों का
दामिनी और गुड़ियाँ की चीख गुजती फिजा में 
कहती है नर ने घटाया मान नारियों का 
गुड़ियाँ, दामिनी का इंसाफ कहाँ हुआ अभी................!!
देश सच में ............................

.......................................अरविन्द राय 

हमारी आँखों में हर दिन वही गुलजार रहता है

हमारी आँखों में हर दिन वही गुलजार रहता है 
जिसकी वफ़ा पे अब भी मुझे ऐतबार रहता है
जानते है की वे लौटकर न आएँगे कभी फिर भी 
जाने क्यों मुझे उनके  आने का इंतजार रहता है......?

.......................................अरविन्द राय 

मुझसे मिल के गले आज रो लीजिये

मुझसे मिल के गले आज रो लीजिये
क्या पता फिर कभी हम मिले ना मिले.......!!

........................................अरविन्द राय 

शौर्य को नमन अंगड़ाई को नमन

शौर्य को नमन अंगड़ाई को नमन और 
भगत सिंह वाली तरुणाई को नमन है 
कुवर,शिवा जी,राणा,भामा को नमन और  
बीर माता पन्ना जिजाबाई को नमन है 
गुरु,सुखदेव,मंगल पाण्डेय बोश को नमन 
अशफाक,तात्या,लक्ष्मीबाई को नमन है 
माता भारती के स्वाभिमान की सुरक्षा हेतु 
सीमा पे डटें जो उन सिपाही को नमन है.........!!

........................................अरविन्द राय 

आरक्षण की निति गलत है इसको हमे मिटाना है,

आरक्षण की निति गलत है, 
इसको हमे मिटाना है, 
मानवता के लिए पुनह 
मानवता को अपनाना है ,
जाती-पाती का भेद मिटाके 
समता हमे बनाना है ,
राजनीती के परेदारो 
देश प्रेम की बात करो, 
फुट डालने की निति से ,
देश को मत बर्बाद करो ,
याद करो उन बीरो को 
जो देश प्रेम के पथिक रहे 
जिनकी क़ुरबानी को देख 
 अँगरेज़ भी चकित रहे
जाती-पाती का खेल खेलना 
अब तो लोगो बंद करो 
बिष बमन के दातो को
अब तो लोगो कूंद करो 
बिन आरक्षण देश बनेगा 
बिश्व गुरु मानवता का 
जब यह देश समझ पायेगा 
कीमत ज्ञान और योग्यता का.........

.............................................अरविन्द राय 

आओ फिर प्यार की एक कहानी लिखें ......

आओ फिर प्यार की एक कहानी लिखें ......
चांदनी, चाँद और रात रानी लिखें ......
प्रेम की साधना की सरल ब्यंजना ......
प्यास चातक की स्वाति का पानी लिखें ......!

..........................................अरविन्द राय 

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

मंदिर गया मै मस्जिद गिरजा भी घूम आया 
गुरुद्वारा कशी कावा मथुरा में सर झुकाया 
बेचैन मन हमारा पाया सुकूँ कहिं ना
चरणों में माँ पिता के सुख शांति आ के पाया ......!

………………………………अरविन्द राय
आशमा से मौत जब बरसने लगी तो 
लोग असमय काल के ही ग्रास बनने लगे 
देखते ही देखते फिजा तो जलमग्न हुई 
सूखे पत्तो की तरह मकान बहने लगे 
आस्था के धाम में गए थे कुछ मागने को 
पर सब गवां के अब प्रलाप करने लगे 
किसी ने बहन खोया किसी ने गवाया भाई
कितनो ही घर के चिराग बुझने लगे ………। 

......................................... अरविन्द राय
नफरत की नही प्यार की शुरुआत कीजिये 
कुछ इस तरह से उनसे मुलाकात कीजिये 
है_ प्यार_ गर _तुझे तो _इजहार _यूँ करो 
कभी आ _के अकेले_ में मुलाकात कीजिये 
ग़र प्यार के _रिश्ते को निभाना है उम्र भर 
तो _उनकी तरह _अपने ख़यालात कीजिये 

............................................. अरविन्द राय

सोमवार, 26 अगस्त 2013

नफरत की नही प्यार की शुरुआत कीजिये



नफरत की नही प्यार की शुरुआत कीजिये 
कुछ इस तरह से उनसे मुलाकात कीजिये 
है_ प्यार_ गर _तुझे तो _इजहार _यूँ करो 
कभी आ _के अकेले_ में मुलाकात कीजिये 
ग़र प्यार के _रिश्ते को निभाना है उम्र भर 
तो _उनकी तरह _अपने ख़यालात कीजिये 

............................................. अरविन्द राय 

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

आज़ादी का जश्न मनाया जायेगा

आज़ादी का जश्न मनाया जायेगा 
लाल किला पर ध्वज फरया जायेगा 
देश की खातिर सरहद पे मरने वालो 
कल तुमको बेईमान बनाया जायेगा 

...................................अरविन्द राय

सोमवार, 12 अगस्त 2013

देश सच में मेरा आज़ाद कहाँ हुआ अभी............!!


देश सच में मेरा आज़ाद कहाँ हुआ अभी............!!
मुगलों के बाद अंग्रेजों के गुलाम हुए
आक्रमणकारियों के हाथों गुलशन वीरान हुए
वीर शहीदों की चिताओं को जलाकर के 
गोरों से बचे तो अब कालों के गुलाम हुए 
कालों से आज़ादी का एलान कहाँ हुआ अभी ............!!
देश सच में ..............
"फूट डालो राज करो" नीति अंग्रेजो की थी 
दमनकारी नीति भी बनाई उन्ही गोरों ने थी 
खद्दर और खाकी भी उन्ही को अपना के चली 
जनता को दबाने वाली नीति अंग्रेजो की थी 
अंग्रेजो वाली निति का बिरोध कहाँ हुआ अभी .........!!
देश सच में .................
राजशाही टूटी लोकतंत्र का अवतार हुआ 
गुलशन में गुल नही सिर्फ खार खार हुआ 
राजनीती वोट की खिलाई गुल इस कदर 
सत्ता की खातिर हर रिश्ता तार तार हुआ 
जनतंत्र का यहाँ प्रसार कहाँ हुआ अभी ...........!!
देश सच में ....................
माली ही कुचलने लगा है मान कलियों का 
बहसी दरिंदों ने घटाया मान गलियों का
दामिनी और गुड़ियाँ की चीख गुजती फिजा में 
कहती है नर ने घटाया मान नारियों का 
गुड़ियाँ, दामिनी का इंसाफ कहाँ हुआ अभी................!!
देश सच में ............................

.......................................अरविन्द राय 

किसी की आँखों में सपने सजाने का ख़याल आया

किसी की आँखों में सपने सजाने का ख़याल आया 
उन्हें देखा तो उनसे दिल लगाने का ख़याल आया 
इबादत मैंने की उनकी जिन्हें रुसवा किया तुमने 
बजा जब मंदिर का घंटा मुझे माँ का ख्याल आया 
किसी मासूम चिड़िया के परों को नोचने वालों 
तुम्हे चौराहे पे फ़ासी लगाने का ख़याल आया 
इक चिड़िया मेरे आगन में आकर गुनगुनाई जब 
इक बेटी घर में हो मेरे मुझे ऐसा खयाल आया 
मुझे अफ़सोस है इसका की वो रुसवा हुए मुझसे 
मै जीते जी मरा फिर से मुझे जब ये खयाल आया
किसी हैवान ने इंसानियत को कर दिया रुसवा
मै भी कुछ कर नहीं पाया मुझे इसका मलाल आया

...............................................अरविन्द राय

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

हे ममतामयी माँ शारदे मुझे भक्ति प्रसाद का घूट पिला दे

हे ममतामयी माँ शारदे मुझे भक्ति प्रसाद का घूट पिला दे 
शब्द के बंद से छन्द बना के करे अर्चना ऐसी शक्ति दिला दे 
रहे अनुराग तेरे चरणों में ना भूलू कभी ऐसी प्रीती खिला दे 
मै जड़ मुड़ अनाड़ी हूँ माँ उर में मेरे ज्ञान की ज्योति जला दे .............

.................अरविन्द राय

प्रेम प्रतीक सभी कहते है "ताज महल" को दुनिया में

प्रेम प्रतीक सभी कहते है "ताज महल" को दुनिया में 
पर सच है यह प्रेम नहीं दौलत की कहानी कहता है ……….

...............................................अरविन्द राय

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

कुछ तो रहम करो अब हमपर मत बाटो इंसान को.....



धरती  बाटा, अम्बर  बाटा, बाट  दिया  भगवान को,
कुछ तो रहम करो अब हमपर मत बाटो इंसान को.....

रिश्तो की कीमत को समझो यूँ ना इसे बरबाद करो 
अपनी  आँखों  में औरों  के सपनो  को आबाद  करो
खुद की  खातिर जो  जीते है उनको  ये मालूम नही 
अश्क  बहाए   जो  गैरों  पे  वो  प्यारा  भगवान को.....
धरती ..........
जिनके  हाथ  में  पतवारें  है  वो  ही  नाव  डुबाते  है,
किस पे हम एतबार करे यहाँ  सबके हाथ ही काले हैं 
देश  धर्म  के लिए भगत,आज़ाद, बोश  बन  जाओ,
कागज के  टुकड़ो की खातिर  मत बेचो  इमान को....
धरती ...........
कौम की खातिर मिटने वाले इतना याद सदा रखना 
मानवता से नही बड़ा कुछ ईश्वर अल्ला का कहना 
जेहादी  बन, खून बहाना   जिसने  ये  फ़रमाया  है
कहना उसे बदनाम करें ना, कुरान-ए-रहमान को....
धरती ...................


 ................................................अरविन्द राय 

गुरुवार, 11 जुलाई 2013

हे ममतामयी माँ शारदे मुझे भक्ति प्रसाद का घूट पिला दे ......

हे ममतामयी माँ शारदे मुझे भक्ति प्रसाद का घूट पिला दे 
शब्द के बंद से छन्द बना के करे अर्चना ऐसी शक्ति दिला दे
रहे अनुराग तेरे चरणों में ना भूलू कभी ऐसी प्रीती खिला दे 
मै जड़ मुड़ अनाड़ी हूँ माँ उर में मेरे ज्ञान की ज्योति जला दे .............

मातृभूमि के लिए जिए जो नर कहलाये मातृभूमि के लिए मरे जो देवता है वो ...
मान सम्मान के लिए जो जिए मर जाये धरती के मान की सुरक्षा करता है वो ...
सीमा के सुरक्षा के लिए जो प्राण दान करे वीरो की परम्परा का मान रखता है वो ...
माता भारती के दर्द को जो आत्मसात करे क्रांतिकारी भगत सुबाश बनता है वो .....
देश के सपूतो माता भारती पुकार रही माँ के आशुओ का मोल अर्पित कीजिये ..
छूने नही पाए कोई रावण सिया का दामन लक्षमन रेखा आज फिर खीच दीजिये .... 
रिक्त नहीं होने पाए राह कुर्बानियों की एक एक कर मृत्यु का  बरण कीजिये .....
भगत सुबाष अशफाक की अमानत है ये होके बलिदान इसका मान रख लीजिये ...
आशमा से मौत जब बरसने लगी तो लोग असमय काल के ही ग्रास बनने लगे 
देखते ही देखते फिजा तो जलमग्न हुई सूखे पत्तो की तरह मकान बहने लगे 
आस्था के धाम में गए थे कुछ मागने को पर सब गवां के अब प्रलाप करने लगे 
किसी ने बहन खोया किसी ने गवाया भाई कितनो ही घर के चिराग बुझने लगे 

हुआ आगमन नव बसंत का कलियों के यौवन मुस्काए.....

हुआ आगमन नव बसंत का कलियों के यौवन मुस्काए
सप्त रंगों से सजी रंगोली "होली आई वो ना आये "....!
प्रेम सुधा आँखों से छलके अंगड़ाई ले यौवन महके 
प्रेम रंग में तन मन भीगे आलिंगन को जियरा चहके
अभिलाषा परवान चढ़े कब,सोच के बिरहन अश्क बहाए ..
होली आई वो ना आये…. !
कलियों से अठखेली खेले भ्रमर प्रीति की होली खेले 
लता शाक से लिपट रही है इन्द्रधनुष को अंक में लेले
मधुमास की मधुर छटा में कौन बिरह के गीत सुनाये ...
होली ई वो ना आये .......!
होली तो त्यौहार है उनका साथ में प्रियतम प्यार हो जिनका
चारो तरफ गुलाल बिखेरे पिय से सजा श्रींगार हो जिनका
बिरह अगनि की आग जले जो कैसे रंग वो बदन लगाये ....
होली आई वो न आये .......!!

कवि अरविन्द राय .....

लम्हे सुहाने गर हमारे साथ हो न हों ......

लम्हे सुहाने गर हमारे साथ हो न हों 
पहले वाली चाहे कोई बात हो न हो 
प्यार तो तुम्हारा सदा दिल में रहेगा 
उम्र भर भी चाहे मुलाकात हो न हो 

कवि अरविन्द राय

देख दरिंदो की हरक़त को मानवता शरमाती है.....

देख दरिंदो की हरक़त को मानवता शरमाती है
राखी के धागों की यांदे धुधली पड़ती जाती है
वहीं दामिनी चीख रही है गुडिया वहीँ तडपती है
लक्ष्मी,दुर्गा सरस्वती जहाँ पे पूजी जाती है ...!! .............अरविन्द राय

किसी की आँखों में सपने सजाने का ख़याल आया .....

किसी की आँखों में सपने सजाने का ख़याल आया 
उन्हें देखा तो उनसे दिल लगाने का ख़याल आया 
इबादत मैंने की उनकी जिन्हें रुसवा किया तुमने 
बजा जब मंदिर का घंटा मुझे माँ का ख्याल आया 
किसी मासूम चिड़िया के परों को नोचने वालों 
तुम्हे चौराहे पे फ़ासी लगाने का ख़याल आया
इक चिड़िया मेरे आगन में आकर गुनगुनाई जब
इक बेटी घर में हो मेरे मुझे ऐसा खयाल आया
मुझे अफ़सोस है इसका की वो रुसवा हुए मुझसे
मै जीते जी मरा फिर से मुझे जब ये खयाल आया
किसी हैवान ने इंसानियत को कर दिया रुसवा
मै भी कुछ कर नहीं पाया मुझे इसका मलाल आया

...............................................अरविन्द राय

शनिवार, 29 जून 2013

तेरे इश्क़ ने गर सताया न होता

तेरे इश्क़ ने गर सताया न होता
तो यूँ आँसुओं को बहाया न होता
सफ़ीना भी साहिल की बाँहों में सोता
जो तूफ़ां समुन्दर में आया न होता
अगर जानता संगदिल की हक़ीक़त
तो दिल उस से हरगिज़ लगाया न होता



( कवि अरविन्द राय )

प्रेम पथिक प्रियतम को ढूंढे, आँखों में भर अश्क बिरह के

प्रेम पथिक प्रियतम को ढूंढे, आँखों में भर अश्क बिरह के 
पात पात सा गिरता जाये चाह लिए ऋतुराज मिलन के



( कवि अरविन्द राय )