आशमा से मौत जब बरसने लगी तो
लोग असमय काल के ही ग्रास बनने लगे
देखते ही देखते फिजा तो जलमग्न हुई
सूखे पत्तो की तरह मकान बहने लगे
आस्था के धाम में गए थे कुछ मागने को
पर सब गवां के अब प्रलाप करने लगे
किसी ने बहन खोया किसी ने गवाया भाई
कितनो ही घर के चिराग बुझने लगे ………।
.............................. ........... अरविन्द राय
लोग असमय काल के ही ग्रास बनने लगे
देखते ही देखते फिजा तो जलमग्न हुई
सूखे पत्तो की तरह मकान बहने लगे
आस्था के धाम में गए थे कुछ मागने को
पर सब गवां के अब प्रलाप करने लगे
किसी ने बहन खोया किसी ने गवाया भाई
कितनो ही घर के चिराग बुझने लगे ………।
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