मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

लोकतंत्र की परिपाटी का देखा खेल निराला


लोकतंत्र की परिपाटी का देखा खेल निराला
एक चोर ने कुत्ते को रोटी का टुकड़ा डाला
कुत्ता रोटी देख सोचने लगा ठिठक कर मन में
किसी गरीब की हाय को कैसे ग्रहण करू आनन् में
किसी गरीब बच्चे के मुह का यह तो निवाला होगा
भूख के ब्याकुल उस बच्चे का दिन भी काला होगा
भूख से ब्याकुल मै भी हूँ पर स्वाभिमान की खाऊंगा
किसी और की रोटी से ना अपनी भूख मिटाऊंगा
कुत्ते की इस उधेड़ बुन को थानेदार ने रोका 
उसे भागने की खातिर जब पीठ पे डंडा ठोका
कुत्ते को भगा उठाया, छट से उसने रोटी
जैसे सारी दुनिया की दौलत हो उसमे समेटी
तभी एक के नेता ने आ कर अपना हिस्सा बटाया
मिल बाट कर सबने खूब मज़े से खाया
मानवता के इस स्वरूप को देखकर कुत्ता चिल्लाया
धन्यबाद भगवान तेरा मुझे मानव नहीं बनाया ...!!

................................................अरविन्द राय

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