गुरुवार, 11 जुलाई 2013

हे ममतामयी माँ शारदे मुझे भक्ति प्रसाद का घूट पिला दे ......

हे ममतामयी माँ शारदे मुझे भक्ति प्रसाद का घूट पिला दे 
शब्द के बंद से छन्द बना के करे अर्चना ऐसी शक्ति दिला दे
रहे अनुराग तेरे चरणों में ना भूलू कभी ऐसी प्रीती खिला दे 
मै जड़ मुड़ अनाड़ी हूँ माँ उर में मेरे ज्ञान की ज्योति जला दे .............

मातृभूमि के लिए जिए जो नर कहलाये मातृभूमि के लिए मरे जो देवता है वो ...
मान सम्मान के लिए जो जिए मर जाये धरती के मान की सुरक्षा करता है वो ...
सीमा के सुरक्षा के लिए जो प्राण दान करे वीरो की परम्परा का मान रखता है वो ...
माता भारती के दर्द को जो आत्मसात करे क्रांतिकारी भगत सुबाश बनता है वो .....
देश के सपूतो माता भारती पुकार रही माँ के आशुओ का मोल अर्पित कीजिये ..
छूने नही पाए कोई रावण सिया का दामन लक्षमन रेखा आज फिर खीच दीजिये .... 
रिक्त नहीं होने पाए राह कुर्बानियों की एक एक कर मृत्यु का  बरण कीजिये .....
भगत सुबाष अशफाक की अमानत है ये होके बलिदान इसका मान रख लीजिये ...
आशमा से मौत जब बरसने लगी तो लोग असमय काल के ही ग्रास बनने लगे 
देखते ही देखते फिजा तो जलमग्न हुई सूखे पत्तो की तरह मकान बहने लगे 
आस्था के धाम में गए थे कुछ मागने को पर सब गवां के अब प्रलाप करने लगे 
किसी ने बहन खोया किसी ने गवाया भाई कितनो ही घर के चिराग बुझने लगे 

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