गुरुवार, 19 सितंबर 2013

तेरे_ इश्क़ ने गर_ सताया न_ होता

अपनी एक ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहा हूँ........!

तेरे_ इश्क़ ने गर_ सताया न_ होता
तो यूँ_ आँसुओं को_ बहाया न होता
सफ़ीना भी साहिल की बाँहों में सोता
जो तूफ़ां _समुन्दर में आया न होता
अगर_ जानता _संगदिल की_ हक़ीक़त
तो दिल उस से हरगिज़ लगाया न होता
चंदा _में _है _दाग_ होता _यकीं _ग़र 
तो मे _चांदनी _में नहाया _न होता 
कशक आखिरी है यही दिल की अरविन्द
यकीं _बेवफाओं _पे _आया _न _होता ........!!

.....................अरविन्द राय

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